Thursday, October 25, 2012
A Slow Train to Gwalior, A Poem by Badal Saroj
सुस्त चाल नहीं इसे अलमस्त चाल कहते हैं हमारे ग्वालियर में/
बढ़ते हैं खरामा खरामा/
न जाने की हड़बड़ी होती है-न पहुँचने की जल्दी/
इसीलिए पेड़ पीछे नहीं छूटते - साथ रह जाती है उनकी छाँव/
खेत ठहरे से रहते हैं और पार होने को ही नहीं आती चम्बल/ चम
्बल-जो नदी भर नहीं है -
वह क्रिया-सर्वनाम-संस्कृति-परिवेश-भाषा यहाँ तक कि व्याकरण भी है / उस चम्बल के ऊपर से आज तक नहीं गुजरा कोई/
चम्बल ही गुजरी है सबके ऊपर से सर्वदा/
अबकी बार ग्वालियर की किसी स्लो ट्रेन से गुजरें तो मिलिएगा-
कंक्रीट के जंगलों में बची दूब की मानिंद
किसी अविस्मृत याद की तरह इन्तेजार में खड़ा पायेंगे ग्वालियर को /
Badal Saroj
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Lovely poems - both.
ReplyDeleteThanks Glory
ReplyDeleteग्वालियर की याद ताजा हो गई इसको पडकर .
ReplyDeletegreat amitabhji
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