tag:blogger.com,1999:blog-8744068620484475777.post1722452796695049842..comments2023-11-04T08:56:44.652+02:00Comments on South African Poetry and Art of Amitabh Mitra: GwaliorAmitabh Mitrahttp://www.blogger.com/profile/17381944002466721155noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-8744068620484475777.post-60598930889190896742011-12-21T21:46:32.980+02:002011-12-21T21:46:32.980+02:00Fascinating, DevendrabhaiFascinating, DevendrabhaiAmitabh Mitrahttps://www.blogger.com/profile/17381944002466721155noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8744068620484475777.post-90855118481899803332011-12-20T08:44:00.797+02:002011-12-20T08:44:00.797+02:00गुज़रे निशान
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दीवारों की सलवटें ...गुज़रे निशान<br />----------------- <br />दीवारों की सलवटें <br />वक़्त की झुर्री नहीं<br />दर्द की लगती हैं<br />कंगूरों पर जम गयी <br />ओस, धूल, पंछी विसर्जन<br />की खिचड़ी <br />नफरत की धमक <br />दर्द की चीखों <br />षड्यंत्रों की फुसफुसाहट <br />छुपे वासना के प्रयासों <br />की तड़क में लिपिबद्ध<br /> <br />हवाओं के स्वरों<br />सन्नाटों के बोल<br />धुप के पसीने<br />चांदनी की उमस<br />मौसम का ठहरना<br />जालों की बस्ती<br />चिमगादड़ों की महक<br />दरारों के पीपल<br />झरोखों में काई<br />फर्श के खरंजे<br />दरवाजों पर देवता<br /> <br />सिसक, खिलखिलाहट, चीख<br />समेटे रेत चूने के धड में<br />धूप, बरसात, जाड़ों से सड़ी चमड़ी<br />को गर्व से कहीं शर्म से<br />परोसे हुए खड़े<br />ग्वालियर, चित्तौड़, बकिंघम<br />सेंट पीटर, गोलकुंडा <br />किले, दुर्ग, छतरी<br />मज़ार, बावड़ी, महल<br />उम्र दराज होते हैं<br />किस्सों के अचार<br />अफवाहों की चाशनी<br />में सरोबोर<br />गुज़रे निशान !!!देवेन्द्र शर्मा (Devendra Sharma)https://www.blogger.com/profile/06120206172706243159noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8744068620484475777.post-70603230791489976962011-12-18T22:09:03.187+02:002011-12-18T22:09:03.187+02:00Thanks a lot, KakoliThanks a lot, KakoliAmitabh Mitrahttps://www.blogger.com/profile/17381944002466721155noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8744068620484475777.post-36916290238461045582011-12-16T15:11:35.208+02:002011-12-16T15:11:35.208+02:00A fine speech, a terrified scream, an untimely dus...A fine speech, a terrified scream, an untimely dusk and a dumb struck depth- all assimilated into a music in your painting and poem.kakolihttps://www.blogger.com/profile/11557881312242068301noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8744068620484475777.post-78350099836817738132011-12-10T12:12:22.369+02:002011-12-10T12:12:22.369+02:00A Million Thanks Badalbhai
This is an Immortal Tra...A Million Thanks Badalbhai<br />This is an Immortal TranslationAmitabh Mitrahttps://www.blogger.com/profile/17381944002466721155noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8744068620484475777.post-42589510341119423092011-12-10T07:06:09.122+02:002011-12-10T07:06:09.122+02:00किले तो यू भी खामोशियों की ईंटों से बने हैं -हमेश...किले तो यू भी खामोशियों की ईंटों से बने हैं -हमेशा.<br />उनकी ऊंचाइयां उनमे बैठने वालों की नीचाइयों की <br />विलोमानुपाती रही हैं.<br />उनमे उगे पेड़ तक वंचित रहे हैं छाया से.<br />उनके बुर्ज पर सन्नाटे के झंडे ही लहराए हैं-<br />काई की सतह पर धूल की कलम ने<br />अनंत आकाश पर दर्ज किये हैं उनके गुनाह-<br />जो जगह कम पड़ने के चलते अक्सर <br />पूरे नहीं लिखे जा सके हैं.<br />सारी नदियों की धार चुरा कर <br />उन्हें कैद कर दिया गया है उन सरोवरों में-<br />जिनका दर्शन तक अपराध होता है.<br />तीसरे तल में गूंजता है दारा शिकोह का क्रंदन <br />ऊपर के दालान में गूजती हैं मृगनयनी गूजरी की सिसकी.<br />अतीत इन्साफ की तलाश में खडा है दरगाह पर पागल हुआ-<br />वर्तमान बाबा कपूर गेट से चढ़ कर उरवाई गेट <br />से फिसल कर निकल जाता है-<br />बैताल की तरह.<br />उसका विक्रम इस विराट पथरीले दानव की नींव में करवट ले रहा है.<br />कभी आओ. उसे मिलकर जगायेंगे.<br />तुम अपनी कविता से उसका अनेस्थिसिया उतारना<br />मैं अपनी अंजुरी से कुछ बूंदे उसके चेहरे पर डालूँगा.<br />तुम उसे अपनी मनोहारी धुन में प्रभात का कोई राग सुनाना-<br />मैं अपनी भूख से चुराकर कुछ दाने उसके मुंह में डालूँगा.<br />और जब <br />इस तरह जाग जायेगी नींव तो ढह जाएगा <br />वह अंधियारा जो सदियों से किरणों की पहरेदारी पर लगा हुआ है <br />और आज़ाद हो जाएगा सूरज<br />उसकी रोशनी में हम मिलकर रचेंगे सब कुछ नया.<br />तुम कविता लिखना-<br />मैं उसे नक्शा बनाकर ईंट माटी से आकार दूंगा.<br />और इस तरह <br />पुराने ग्वालियर की विरासत को सलामत रखते हुए <br />गढ़ेंगे नया ग्वालियरbadal sarojhttps://www.blogger.com/profile/11249764438637286008noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8744068620484475777.post-50802261008540336102011-12-09T21:04:45.638+02:002011-12-09T21:04:45.638+02:00Thanks a million, GloryThanks a million, GloryAmitabh Mitrahttps://www.blogger.com/profile/17381944002466721155noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8744068620484475777.post-41703970909319585222011-12-09T03:45:32.107+02:002011-12-09T03:45:32.107+02:00Amazing! It took my breath away.Amazing! It took my breath away.Glory Sasikalahttps://www.blogger.com/profile/17740155281392231934noreply@blogger.com